Wednesday, December 29, 2010

अंदर वाले `बाहरी`


बयान बयान होता है, विवादास्पद होना तो कुछ बयानों का स्वभाव होता है। अब एसे स्वभाविक विवादास्पद बयानंो को अन्यथा लेकर हो-हल्ला मचाना कहां की समादारी है। एसा ही एक गरमा गरम बयान राजनीतिक गलियारों से बाहर निकला, बस फिर क्या था, उसकी गरमी ने मानो दिल्ली की सर्द फिज़ा को ही बदल डाला। बात सिर्फ इतनी सी थी, कि दिल्ली में अपराध के लिये बाहरी लोग जिम्मेदार हैं या नहीं। सुनते ही तैश में आ गए विरोधी, आव देखा न ताव, माफी मांगने का फरमान जारी कर डाला। आखिर प्रवासियों ने एसा क्या कर डाला? मजेदार बात यह है, कि बयान देने वाले मंत्रीजी स्वयं भी प्रवासी हैं। और एक जिम्मेदार गंभीर नेता भी। सो यह बयान न तो मजा़क ही हो सकता है, न साधारण सी भूल। फिर इसका गूढ़ अर्थ तो ढूंढना ही था। बहुत सोचने के बाद दिमाग की हांडी में जो खिचड़ी पकी, उसके स्वादानुसार इस बयान के पीछे मंत्री जी का दर्द भी हो सकता है।
दिल्ली गवाह है कुछ नागवार कारनामों की जो सचमुच बाहर वालों ने ही किऐ हैं। कुछ और छानबीन के लिए जरा फ्लैश बैक में चलते हैं। कुछ वर्ष पहले संसद में प्रश्न पूछने के लिए कुछ सम्मानीय सासंदो ने घूस मांगी, इत्तेफाक से इस अपराध को अंजाम देने वाले ‘बाहरीज् ही थे। बात स्पैक्ट्रम घोटाले की करें, यहां भी मुख्य आरोपी ‘बाहरी` ही हैं। राडिया हो या माधुरी हो या राजा, कई कंलक दिल्ली की छाती पर बाहर वालों के दिए हुए ही हैं। चोट कहीं भी लगे दर्द तो दिल को ही होता हैं। सो देश भर की चोटों का दर्द अपने दिल में लिए बेचारी दिल्ली।
संसद पर हमला हो या बम धमाके, जहां देखो वहां ‘बाहरीज् ही ‘बाहरीज्। दिल डरेगा ही, आखिर दिल तो बच्चा है जी। दिल्ली तो हमेशा स्वागत ही करती है प्रवासियों का, छल फिर भी सहना पड़ता है। अजी दिल्ली ही क्या सारा देश परेशान है बाहिरयों के, अब मुबई को ही लीजिए, बेचारा ठाकरे परिवार तो सूरत भी नहीं देखना चाहता बाहरियों की उनकी नजर में भी सबकुछ बुरा किया धरा बाहरियों का ही है। हालांकि इस बाहरी नजरिये के पीछे वोट बैंक ही नजर आता है।
यही वोट बैंक तो सब कुछ करा देता है। अब बेचारे मंत्री जी तो सब देख ही रहे है, सो निकल गया मुख से जो दिखा। बात को समझने और बिसराने में ही भलाई है। वरना यह ‘बाहरी पुराणज् तो अंतहीन है। सो भैया, नेताजी के कथन का छिपा हुआ अर्थ समाने की कोशिश करो। बात कड़वी जरूर है लेकिन गलती से ही सही कुछ न कुछ तो सच कह ही गऐ मंत्री जी।

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