Sunday, May 23, 2010

देखो तुम जल जाओ न...


भोर की बातें करो पर,

अन्धकार तुम बिसराओ न,

लक्ष्य चोटी का हो मन में,

धरा को भूल जाओ न,

स्वप्न नैनों में बसें पर,

तुम स्वप्न में बस जाओ न,

आग मन में बेशक रहे पर,

देखो तुम जल जाओ न,








3 comments:

  1. wah..kya panktiyaan kahi hai nakvi sahab!
    keep it up! :)

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  2. bahut khoob!!! mere blog pr aane ka shukriya

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  3. संक्षिप्तता और संप्रेषणीयता का अच्छा संतुलन, लेकिन, finishing touch में कहीं हल्की सी चूक है.. भई ! मैं तो बताऊँगा नहीं.. खुद देखो !

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