Sunday, May 23, 2010

देखो तुम जल जाओ न...


भोर की बातें करो पर,

अन्धकार तुम बिसराओ न,

लक्ष्य चोटी का हो मन में,

धरा को भूल जाओ न,

स्वप्न नैनों में बसें पर,

तुम स्वप्न में बस जाओ न,

आग मन में बेशक रहे पर,

देखो तुम जल जाओ न,








Saturday, May 22, 2010

हाईटेक अमेठी


लीजिए.. गेट्स चाच भी आ गए..। राहुल भैया की कृपा है जो न हो सो कम। मानेंगे थोड़े ही, साइबर सिटी बना कर ही मानेंगे अमेठी को। बड़े जतन किए रात मंगलू, गंगू, हरिया के घर दाल रोटी खा कर मच्छरों के बीच ऐसे ही थोड़े सोए, आज एक एक मच्छर जानता है कांग्रेस और विकास की भाषा। आदमी में अकल जरा कम है, लेकिन समझ जाएगा वो भी। कभी सोनिया, सचिन कभी प्रियंका दीदी,और अब गेट्स चाचा समझाऐंगे कि अमेठी के विकास का रास्ता राहुल भैया के पीछे पीछे चलने से ही मिलेग। बिना बोले इस संदेश को समङो सो समझदार, बाकी अमेठी वासी चाचा से माइक्रोसॉफ्ट के मैनेजमेंट का हुनर सीख कर काम चला सकते है। अब तो घर की ही बात है, चाचा जब चाहे तब अमेठी वासियों पर ‘सॉफ्टज् प्रेम उड़ेलते नजर आ सकते हैं। ऐसे ही कभी दीनू के आंगन में भोला, हरिया, मंगलू और रज्जू के साथ बीड़ी के सुट्टे लगाते दिख जाए तो आश्चर्य नहीं। जाहिर सी बात है भैया तो साथ होंगे ही।

रात को मंगू की झोपड़ी में डिनर का कार्यक्रम है। एक पंगत में चाचा और भैया दाल में रोटी डुबोते देखे जा सकते हैं। इसी समय में भैया चाचा से पूछेंगे कि मंगलू, हरिया, धानी और छुट्टन के नंगे घूमते बच्चों को सॉफ्टवेयर इंजीनियर कैसे बनाया जाए। छोड़ना किसी को नहीं है, एक एक बच्चे बूढ़े को विकास की बाल्टी में डुबा डुबा कर तर करना है। रात को खुले आकाश के नीचे खटिया पर सोने से पहले तक सारा प्लान तैयार। सुबह तक अमेठी का बच्चा बच्चा ‘हाय , आय एम फ्रॉम अमेठी ज् बोलता नजर आऐगा। जहां तक नजर जाएगी इंटरनेट का जाल, साइबर कैफे और सॉफ्टवेयर सेंटरो की भरमार। पहचान भी नहीं पाओगे मुन्ना, कि वही अमेठी है। जिसे देखो अपने लैपटाप पर नैटिंग, चैटिंग और ब्लॉगिंग करता नजर आएगा। तब मत कहना कि मंगू की बेटी पुनिया हरीराम के बेटे लल्लन को ऑरकुट पर ‘लव यजू का स्क्रेप भेजती है। यहां तक तो सब ठीक..लेकिन जब सुदिया का दीनू चाचा से अंग्रेजी में पूछेगा कि चाचा, कौन टेक्नोलाजी से कम्पयूटर चलाओगे जब बहन जी अठारह-बीस घंटा बिजली ही नहीं देगी? अब मोमबत्ती या लालटेन से तो चलने से रहा। चाचा सुनते ही चुप, बगल में बैठे राहुल भैया को ताकने लगे। भैया बगलें झांकते नजर आए..। लो, रह गया साइबर सिटी का सपना बहनजी की वजह से धरा का धरा। अब बेचारे चाचा को मूर्तियां बनाना तो आता नहीं जो बहनजी उन पर मेहरबान हों। रही बात अमेठी की, सो वह तो भैया की रियासत है, उसमें बिजली के सपने न ही देखे तो ठीक, जब सारा यूपी ही इस बिजली नामक फिजूलखर्ची से बचा है।
सो भैया जी एसी कोई जुगत लगे कि जसे कम्पूयटर बाहर से मंगा लाए, वैसे ही कही से बिजली की भी जुगाड़ हो जाए तो चल पड़े हरिराम, मंगलू, सुदिया और दीनू का लैपटॉप, और सारी दुनिया देख ले ऑनलाइन अमेठी के विकास का नजारा।

Wednesday, May 5, 2010

ज़िन्दगी जिंदा है

नई सुबह की आस मे भी ,
हर आम ओ ख़ास में भी,
अनुभव की गर्म रेत पर भी,
रिश्तों की नर्म घास में भी,
तल्खियों की सोच में भी,
प्यार के एहसास में भी,
सूखते फटते खेतों में भी,
चिड़ियों की प्यास में भी,
ज़िन्दगी तब भी जिंदा थी ....
ज़िन्दगी अब भी जिंदा है... ।